उपासना एवं आरती >> उपासना एवं स्तोत्र शक्ति उपासना एवं स्तोत्र शक्तिरमेशचन्द्र श्रीवास्तव
|
7 पाठकों को प्रिय 593 पाठक हैं |
प्रस्तुत है उपासना एवं स्त्रोत शक्ति के चमत्कार...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
1. समस्त ग्रहों की उपासना एवं स्तोत्र।
2. समस्त देवताओं से अभीष्ट प्राप्ति के साधन।
3. जीवन संघर्ष के उद्धार के उपाय एवं उपासना।
4. शक्ति ही जीवन है और जीवन ही शक्ति है का रहस्य उद्घाटन।
5. मानव कल्याण एवं धर्म स्थापना में सहायक स्तोत्र।
6. सामान्य से सामान्य पाठक के लिए उपयोगी उपहार।
2. समस्त देवताओं से अभीष्ट प्राप्ति के साधन।
3. जीवन संघर्ष के उद्धार के उपाय एवं उपासना।
4. शक्ति ही जीवन है और जीवन ही शक्ति है का रहस्य उद्घाटन।
5. मानव कल्याण एवं धर्म स्थापना में सहायक स्तोत्र।
6. सामान्य से सामान्य पाठक के लिए उपयोगी उपहार।
ज्योतिष तंत्र सम्राट
रमेश चन्द्र श्रीवास्तव का
सम्पूर्ण जीवन धर्म, ज्योतिष. तंत्र-मंत्र एवं अध्यात्म को समर्पित है।
पाठकों के लिये यह नाम अब किसी परिचय या ख्याति का मोहताज नहीं रहा। अपनी
खोजी दृष्टि स्वाध्याय एवं वैज्ञानिक की तर्कसंगत सम्पत्ति से रमेश चन्द्र
श्रीवास्तव ने ज्योतिषि एवं तांत्रिक जगत में अपना विशिष्ट स्थान बना रखा
है। इसलिए इस भौतिक किन्तु वैज्ञानिक युग का हर पाठक इनके विचारों से
प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। आप स्वयं इस पुस्तक को एक अनमोल रत्न
समझेंगे, यह हमारा विश्वास है।
जेतं यस्त्रिपुरं हरेणा व्याजाद्धलिं बन्धता,
स्त्रष्टुं वारिभवोभ्दवेन भुवनं शेषेण धर्तुं धराम्
पार्वत्या महिषासुर प्रमथने सिद्धाधिपैः सिद्धये,
ध्यातः पंचशरेण विश्वजितये पायात्स नागाननः ।।
स्त्रष्टुं वारिभवोभ्दवेन भुवनं शेषेण धर्तुं धराम्
पार्वत्या महिषासुर प्रमथने सिद्धाधिपैः सिद्धये,
ध्यातः पंचशरेण विश्वजितये पायात्स नागाननः ।।
त्रिपुरासुर को जीतने के लिए शिव ने छल से राक्षस राज बलि को बाँधते समय
विष्णु ने जगत की रचना के लिए स्वयं ब्रह्मा ने, पृथ्वी को धारण करने के
लिये शेषनाग ने महिषासुर को मारते समय पार्वतीजी ने सिद्ध पाने के सिद्धों
के अधिपतियों ने और संसार को जीतने के लिए कामदेव ने जिन देवाधिदेव गणेश
जी का ध्यान किया है वहीं हम सबका भी पालन करें। हम उन्हीं की वन्दना करते
हैं।
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्व लक्ष्मीः
पापात्मना कृतधियां हृदयेषु वुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजन प्रभवस्य लज्जा,
तां त्वां नताःस्म परिपालय देविविश्वम् ।।
पापात्मना कृतधियां हृदयेषु वुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजन प्रभवस्य लज्जा,
तां त्वां नताःस्म परिपालय देविविश्वम् ।।
जो पुण्यात्माओं के घरो में स्वयं ही लक्ष्मी रूप में, पापियों के यहाँ
दरिद्रता रूप में शुद्ध अन्तःकरण वाले व्यक्तियों के हृदय में सद्बुद्धि
रूप में, सत्पुरुषों में श्रद्धा रूप में, कुलीन व्यक्तियों में लज्जा रूप
से निवास करती हैं। उन्हीं आप भगवती दुर्गा को हम सब नमस्कार करते हैं। हे
देवि ! आप ही सम्पूर्ण विश्व का पालन-पोषण कीजिये।
दो शब्द आपसे
‘साम’ या स्तुति या प्रार्थना में वह शक्ति है जिससे
जड़ चेतन
सभी को प्रसन्न एवं अपने अनुकूल किया जा सकता है। संसार और संसार से परे
विभिन्न लोकों में कौन ऐसा है जो स्वयं की प्रशंसा से, स्तुति से,
प्रार्थना से हर्षित नहीं होता ? अर्थात सभी देव दानव, यक्ष, किन्नर,
मानव, भूत, प्रेत, राक्षस, वैताल यहाँ तक कि जड़, निर्जीव समझे जाने वाले
हिमालय से लेकर त्रण तक प्रार्थना से, स्तुति से प्रसन्न हो जाते हैं।
‘स्तोत्रं कास्य न तुष्टये’- इस सूत्र में विशाल, महान सत्य भावना भरी है। स्तोत्र से किसे सन्तुष्ट, प्रसन्न नहीं किया जा सकता ? अर्थात सभी को स्तोत्रों से प्रसन्न किया जा सकता है और मनोवांछित फल प्राप्त करना कठिन है उन्हीं को सरल सुबोध स्तोत्रों से, प्रार्थनाओं से, भजनों से, संकीर्तन से सहज ही प्रसन्न किया जा सकता है। इसलिये वैदिक या तांत्रिक उपासना से श्रेष्ठ है स्तोत्र, स्तुति प्रार्थना।
इस आदि काल का मानव अध्यात्म की दिशा से भटककर भौतिकता प्रेमी हो गया। विज्ञान को महत्त्व देना आवश्यक है किन्तु धर्म में कितनी गहन वैज्ञानिकता छुपी है इस ओर बहुत कम शोध किया जा रहा है। धर्म जब व्यक्ति का साथ छोड़ देता है वह जीवन असन्तोष से परिपूर्ण हो कुण्डित हो जाता है।
यही कारण है कि आज का मानव कुण्ठित, दिग्भ्रमित, असन्तुष्ट तथा सामाजिक आर्थिक मानसिक विकृतियों से परेशान हो गया है। ऐसे मानव के पास एक ही मात्र एक ही मार्ग शेष रह गया है कि वह ईश्वर की शरण में जाये।
किन्तु ईश्वर की शरण में जायें कैसे ?
इसी प्रश्न का शंका का समाधान करने के लिये मैंने ‘उपासना’ एवं स्तोत्र शक्ति’ नामक यह पुस्तक केवल आपके लिये सामान्य पाठकों के लिये लिखी है। इस पुस्तक में विभिन्न देवी देवताओं के स्तोत्र संकलित हैं और उनकी जानी समझी-परखी अनुभूतियाँ भी दृष्टान्त स्वरूप प्रस्तुत की गयी हैं ताकि सामान्य पाठक अपने हृदय की पीड़ा, मन की तड़पन जीवन की पीड़ा ईश्वर के समक्ष निवेदन कर सके। स्तोत्र संस्कृत में ही हिन्दी हों या किसी भाषा-बोली में हो यदि पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से उनका पाठ स्तवन किया जायेगा तो ईश्वर अवश्य प्रसन्न होंगे। मेरा यह विश्वास ही नहीं है वरन् अनुभव रहा है।
जो पाठक इस पुस्तक में संग्रहित स्तोत्रों का पाठ करके ईश्वर को हृदय से पुकारेगा, उससे भगवान एवं भगवती अवश्य प्रसन्न होंगे। वह अपने मन, धन, तन, समाज, परिवार, राज्य आदि पीड़ा से मुक्त हो जायेगा। इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है। यदि किस को सन्देह हो तो वह स्वयं अपनी श्रद्घा एवं प्रेम भावना के साथ ईश्वर की स्तुति करके मनोवांछित फल प्राप्त कर परख ले।
अन्त में मैं उन ऋषियों, महर्षियों विद्वानों का आभार व्यक्त करता हूँ जिनके विरचित स्तोत्रों का संकलन मैंने आपके लिये किया। इस कार्य में अन्तःकरण से जन-कल्याण की भावना ही रही है।
मैं स्वयं कुछ नहीं हूँ सारा कुछ शिव-शक्ति का ही है। अतः सदैव मन में यहीं भावना बनी रहती है। - ‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे है मोर.....
‘स्तोत्रं कास्य न तुष्टये’- इस सूत्र में विशाल, महान सत्य भावना भरी है। स्तोत्र से किसे सन्तुष्ट, प्रसन्न नहीं किया जा सकता ? अर्थात सभी को स्तोत्रों से प्रसन्न किया जा सकता है और मनोवांछित फल प्राप्त करना कठिन है उन्हीं को सरल सुबोध स्तोत्रों से, प्रार्थनाओं से, भजनों से, संकीर्तन से सहज ही प्रसन्न किया जा सकता है। इसलिये वैदिक या तांत्रिक उपासना से श्रेष्ठ है स्तोत्र, स्तुति प्रार्थना।
इस आदि काल का मानव अध्यात्म की दिशा से भटककर भौतिकता प्रेमी हो गया। विज्ञान को महत्त्व देना आवश्यक है किन्तु धर्म में कितनी गहन वैज्ञानिकता छुपी है इस ओर बहुत कम शोध किया जा रहा है। धर्म जब व्यक्ति का साथ छोड़ देता है वह जीवन असन्तोष से परिपूर्ण हो कुण्डित हो जाता है।
यही कारण है कि आज का मानव कुण्ठित, दिग्भ्रमित, असन्तुष्ट तथा सामाजिक आर्थिक मानसिक विकृतियों से परेशान हो गया है। ऐसे मानव के पास एक ही मात्र एक ही मार्ग शेष रह गया है कि वह ईश्वर की शरण में जाये।
किन्तु ईश्वर की शरण में जायें कैसे ?
इसी प्रश्न का शंका का समाधान करने के लिये मैंने ‘उपासना’ एवं स्तोत्र शक्ति’ नामक यह पुस्तक केवल आपके लिये सामान्य पाठकों के लिये लिखी है। इस पुस्तक में विभिन्न देवी देवताओं के स्तोत्र संकलित हैं और उनकी जानी समझी-परखी अनुभूतियाँ भी दृष्टान्त स्वरूप प्रस्तुत की गयी हैं ताकि सामान्य पाठक अपने हृदय की पीड़ा, मन की तड़पन जीवन की पीड़ा ईश्वर के समक्ष निवेदन कर सके। स्तोत्र संस्कृत में ही हिन्दी हों या किसी भाषा-बोली में हो यदि पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से उनका पाठ स्तवन किया जायेगा तो ईश्वर अवश्य प्रसन्न होंगे। मेरा यह विश्वास ही नहीं है वरन् अनुभव रहा है।
जो पाठक इस पुस्तक में संग्रहित स्तोत्रों का पाठ करके ईश्वर को हृदय से पुकारेगा, उससे भगवान एवं भगवती अवश्य प्रसन्न होंगे। वह अपने मन, धन, तन, समाज, परिवार, राज्य आदि पीड़ा से मुक्त हो जायेगा। इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है। यदि किस को सन्देह हो तो वह स्वयं अपनी श्रद्घा एवं प्रेम भावना के साथ ईश्वर की स्तुति करके मनोवांछित फल प्राप्त कर परख ले।
अन्त में मैं उन ऋषियों, महर्षियों विद्वानों का आभार व्यक्त करता हूँ जिनके विरचित स्तोत्रों का संकलन मैंने आपके लिये किया। इस कार्य में अन्तःकरण से जन-कल्याण की भावना ही रही है।
मैं स्वयं कुछ नहीं हूँ सारा कुछ शिव-शक्ति का ही है। अतः सदैव मन में यहीं भावना बनी रहती है। - ‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे है मोर.....
आपका स्नेही
रमेश चन्द्र श्रीवास्तव
रमेश चन्द्र श्रीवास्तव
उपासना एवं स्तोत्र शक्ति
ईश्वर तक, उस सुपर पावर तक पहुँचने के लिए उसकी कृपा प्राप्त करने के लिये
जिस शक्ति की परम आवश्यकता है वह शक्ति है स्तोत्र शक्ति।
यहाँ मैं उपासना, स्तोत्र एवं उसकी शक्ति का सउदाहरण वर्णन करना आवश्यक समझता हूँ। इसमें मेरे अपने अनुभव, पाठकों के अनुभव, गुरुओं के अनुभव तथा शिष्यों के अनुभवों के साथ विभिन्न धर्मों में प्रार्थना का, स्तुतियों का महत्त्व एवं प्रमुख अनुभवों का उल्लेख करना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ। ताकि पाठकगण यह समझ सकें कि स्तोत्रों में प्रार्थनाओं की कितनी प्रबल शक्ति निहित है स्तोत्रों के सहारे उस शक्ति की कृपा कर अपने विभिन्न मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है।
उप आसना का अर्थ होता है किसी बड़े के समक्ष ‘उप’ छोटे स्थान पर बैठना। ईश्वरोपासना का अर्थ होता है ईश्वर के पास, नीचे बैठना, असीम होना। यानी आप अपने ईष्ट या किसी देवी-देवता या गुरु के आसन के नीचे, पास पहुँचकर स्वयं आसन ले लें या बैठ जायें। या उपसाना पूजा के समय की स्थिति होती है। जब आप अपने ईष्ट के करीब बैठते हैं किन्तु वास्तविक उपासना और पूजा में अन्तर है। यों तो पूजा और उपासना को एक ही अर्थ में ग्रहण किया जाता है किन्तु वास्तविक अर्थों में पूजा करते-करते आप अपने को योग्य बना लें कि आप देवी-देवताओं के समक्ष उप-स्थल ग्रहण कर सकें। उप स्थान ग्रहण कर सकें, उपासना करना यानी देवी-देवता के आसन के करीब पहुँचना। अर्थात पूजा प्रार्थना करते-करते आपके अन्दर वह महान शक्ति संचालित होने लगे जिसकी वृहत्तर रूप ईष्ट के पास है उस सुपर पावर के पास है। आप स्वयं ब्रह्म तत्व को जाग्रत करने में प्राप्त करने में, आत्मा को पहचान कर निखारने में जब समर्थ हो जाते हैं तो पारब्रह्म परमेश्वर का, उस आदि शक्ति परमेश्वरी का, उस परमात्मा का सानिध्य, समीप्य पा जाते हैं। इसी सानिध्य एवं समीप्य को प्राप्त कर लेना अथवा प्राप्त करने के लिए सतत् प्रयत्न करना ही उपसासना है।
तभी तो समीप्य पा गया उपासक स्वयं को अहं ब्रह्मस्मि, शिवोह शक्तियोह कहने का अधिकारी हो जाता है। परमात्मा का अंश आत्मा है किन्तु सांसारिक मलिनताओं से आवृत्त हो वह परमात्मा भिन्न लगती है, भिन्न हो जाती है। जब उपासना की शक्ति प्राप्त कर वहीं भिन्न हुई आत्मा सांसारिक मलिनताओं के आवृक्त का, आवरणों को हटाकर शुद्ध- निर्मल हो जाती है। तो परमात्मा तुल्य हो जाती है। सर्वशक्ति-सम्पन्न हो जाती है। तब परमात्मा और आत्मा में से कोई भेद नहीं रह जाता। जैसे सांसारिक भाषा में मंत्री, उपमंत्री उसी तरह परमात्मा का आसन और आत्मा का उपआसना इस को प्राप्त करने के लिए उपासना तक पहुँचना होता है और उपासना तक पहुँचने के लिए पूजा पाठ, प्रार्थना, स्तुति मंत्र जाप, ध्यान, धारणा, कीर्तन, नामस्मरण का मार्ग सबसे सरल एवं उत्तम है। अतः सरल सामान्य व्यक्ति, को स्तोत्र पाठ के सहारे ईश्वर की कृपा प्राप्त करनी चाहिए। स्तोत्र, स्तुति, प्रार्थना प्रेयर एक ही तत्व की पर्यायवाची शब्द हैं और इनका महत्त्व विभिन्न धर्मों में, विभिन्न सम्प्रदायों में, विश्व की विभिन्न भाषाओं में विश्व के विभिन्न देशों में पूर्णतः स्थापित है।
यहाँ मैं उपासना, स्तोत्र एवं उसकी शक्ति का सउदाहरण वर्णन करना आवश्यक समझता हूँ। इसमें मेरे अपने अनुभव, पाठकों के अनुभव, गुरुओं के अनुभव तथा शिष्यों के अनुभवों के साथ विभिन्न धर्मों में प्रार्थना का, स्तुतियों का महत्त्व एवं प्रमुख अनुभवों का उल्लेख करना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ। ताकि पाठकगण यह समझ सकें कि स्तोत्रों में प्रार्थनाओं की कितनी प्रबल शक्ति निहित है स्तोत्रों के सहारे उस शक्ति की कृपा कर अपने विभिन्न मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है।
उप आसना का अर्थ होता है किसी बड़े के समक्ष ‘उप’ छोटे स्थान पर बैठना। ईश्वरोपासना का अर्थ होता है ईश्वर के पास, नीचे बैठना, असीम होना। यानी आप अपने ईष्ट या किसी देवी-देवता या गुरु के आसन के नीचे, पास पहुँचकर स्वयं आसन ले लें या बैठ जायें। या उपसाना पूजा के समय की स्थिति होती है। जब आप अपने ईष्ट के करीब बैठते हैं किन्तु वास्तविक उपासना और पूजा में अन्तर है। यों तो पूजा और उपासना को एक ही अर्थ में ग्रहण किया जाता है किन्तु वास्तविक अर्थों में पूजा करते-करते आप अपने को योग्य बना लें कि आप देवी-देवताओं के समक्ष उप-स्थल ग्रहण कर सकें। उप स्थान ग्रहण कर सकें, उपासना करना यानी देवी-देवता के आसन के करीब पहुँचना। अर्थात पूजा प्रार्थना करते-करते आपके अन्दर वह महान शक्ति संचालित होने लगे जिसकी वृहत्तर रूप ईष्ट के पास है उस सुपर पावर के पास है। आप स्वयं ब्रह्म तत्व को जाग्रत करने में प्राप्त करने में, आत्मा को पहचान कर निखारने में जब समर्थ हो जाते हैं तो पारब्रह्म परमेश्वर का, उस आदि शक्ति परमेश्वरी का, उस परमात्मा का सानिध्य, समीप्य पा जाते हैं। इसी सानिध्य एवं समीप्य को प्राप्त कर लेना अथवा प्राप्त करने के लिए सतत् प्रयत्न करना ही उपसासना है।
तभी तो समीप्य पा गया उपासक स्वयं को अहं ब्रह्मस्मि, शिवोह शक्तियोह कहने का अधिकारी हो जाता है। परमात्मा का अंश आत्मा है किन्तु सांसारिक मलिनताओं से आवृत्त हो वह परमात्मा भिन्न लगती है, भिन्न हो जाती है। जब उपासना की शक्ति प्राप्त कर वहीं भिन्न हुई आत्मा सांसारिक मलिनताओं के आवृक्त का, आवरणों को हटाकर शुद्ध- निर्मल हो जाती है। तो परमात्मा तुल्य हो जाती है। सर्वशक्ति-सम्पन्न हो जाती है। तब परमात्मा और आत्मा में से कोई भेद नहीं रह जाता। जैसे सांसारिक भाषा में मंत्री, उपमंत्री उसी तरह परमात्मा का आसन और आत्मा का उपआसना इस को प्राप्त करने के लिए उपासना तक पहुँचना होता है और उपासना तक पहुँचने के लिए पूजा पाठ, प्रार्थना, स्तुति मंत्र जाप, ध्यान, धारणा, कीर्तन, नामस्मरण का मार्ग सबसे सरल एवं उत्तम है। अतः सरल सामान्य व्यक्ति, को स्तोत्र पाठ के सहारे ईश्वर की कृपा प्राप्त करनी चाहिए। स्तोत्र, स्तुति, प्रार्थना प्रेयर एक ही तत्व की पर्यायवाची शब्द हैं और इनका महत्त्व विभिन्न धर्मों में, विभिन्न सम्प्रदायों में, विश्व की विभिन्न भाषाओं में विश्व के विभिन्न देशों में पूर्णतः स्थापित है।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book